स्कूलों और अस्पतालों के 100 मीटर के दायरे में हॉर्न बजाने पर पहले से ही सुप्रीम कोर्ट की पाबंदी है। लेकिन अब सरकार भी प्रेशर या हॉर्न से पैदा होने से ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के लिए कड़े कदम उठाने जा रही है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी अब इन पर रोक लगाने के लिए नए कानून लाने जा रहे हैं। अगर ये कानून लागू होते हैं तो जल्द ही प्रेशर हॉर्न की जगह संगीत की मधुर धुनें सुनने को मिलेंगी। हाालंकि सरकार इससे पहले 2017 में भी ऐसी कवायद कर चुकी है।
तब भी केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय ने हॉर्न के शोर को 100 डेसिबल से कम करने का सुझाव दिया था। विशेषज्ञों का कहना है कि आठ घंटे तक 93 डीबी से अधिक ध्वनि के संपर्क में रहने पर कानों की सुनने की क्षमता को नुकसान हो सकता है।
लॉकडाउन के दौरान प्रदूषण मे आई थी कमी
कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण में तो कमी आई ही साथ ही ध्वनि प्रदूषण भी सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया था। लोग घरों में रहने को मजबूर हो गए थे, न तो सड़कों पर ट्रैफिक था और न ही वाहनों कानफोड़ू हॉर्न की आवाजें। उस वक्त तो मोहल्लों में लाउडस्पीकर भी बजना बंद हो गए थे। लेकिन अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होते ही अब वहीं आवाजें फिर से आना शुरू हो गई हैं। बहुत कम लोगों को जानकारी है कि ध्वनि प्रदूषण न केवल हमें मानसिक रूप से नुकसान पहुंचाता है बल्कि शारीरिक तौर पर भी हानिकारक है। इससे न केवल कॉर्डियोवेस्कुलर डिजिज, एंजाइटी, सिरदर्द, एकाग्रता की कमी और बहरापन जैसी समस्या हो सकती हैं।
By : Ankita Kumari
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