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बिहार की पहचान पर गुटखा/तंबाकू का धब्बा


बिहार और उत्तर प्रदेश, देश के ऐसे दो राज्य जिन्होंने वर्तमान भारत के गौरवशाली इतिहास में एक बड़ी भूमिका निभाई है। चाहे नालंदा का विश्वविद्यालय हो या उपनिषदों की उद्गम भूमि इतिहास के पन्नों पर बिहार की अपनी एक अमिट उपस्थिति है । 
हो सकता है शायद आप बिहार के विषय में इतना न जानते हों ।
लेकिन कोई व्यक्ति यदि मुंह में कुछ अखाद्य पदार्थ रखे हुए कबूतरों के समान गूं-गूं करते दिखे तो संभव है कि आप उसे बिहारी समझ ही जाएंगे ।

बिहार और यूपी ऐसे दो राज्य हैं जहां 10 वर्ष के एक छोटे बच्चे से लेकर बूढ़ा आदमी तक गुटखा चबाते मिल ही जाएगा । सड़क के डिवाइडर हों, सरकारी दफ्तर हों या कोई सार्वजनिक शौचालय तंबाकू सेवी कहीं अपनी पहचान छोड़ने से बाज नही आते । 


गुटखा और खैनी के नशे में डूबा बिहार
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा किये गये वैश्विक युवा तंबाकू सर्वेक्षण के अनुसार, दस वर्ष की उम्र से ही बच्चों में सिगरेट और पान-मसाला की लत लगनी शुरू हो जाती है, जो घातक है। मुहल्लों में होने वाले पान मसाला, गुटखा और खैनी की बिक्री के अनुसार 90 प्रतिशत घरों में कम से कम एक या दो लोगों को किसी न किसी तरह की नशे की लत है।
प्रभात खबर में वर्ष 2023 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के मुजफ्फरपुर नगर निगम में 70 हजार घर हैं। यदि इनमें 90 प्रतिशत परिवारों में से एक व्यक्ति को लिया जाये, तो 63 हजार और रोज शहर में काम करने के लिए गांवों से आने वाले 20 हजार में 10 हजार लोग इसका सेवन करते हैं, तो करीब 73 हजार लोगों को नशे की लत है। प्रति व्यक्ति औसत खर्च दस रुपये ही लिया जाये, तो रोज सात लाख से अधिक रुपये का खर्च नशे के लिए किया जाता है। 
कुछ ऐसा ही हाल उत्तर बिहार के अन्य जिले जैसे की पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चम्पारण आदि का भी है।


किस राज्य में होता है उत्पादन ?
चीन (0.45 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर तम्बाकू की खेती) के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तम्बाकू उत्पादक है । यह क्षेत्र वैश्विक तम्बाकू की खेती के क्षेत्र का लगभग 10% है। वैश्विक स्तर पर, भारत कुल तम्बाकू उत्पादन में 9% का योगदान देता है, जो करीब 800 मिलियन किलोग्राम विभिन्न प्रकार के तम्बाकू का उत्पादन करता है। तंबाकू के विभिन्न प्रकारों मे फ़्लू-क्योर वर्जीनिया, देशी तम्बाकू, बर्ले तम्बाकू, बीड़ी तम्बाकू, रस्टिका तम्बाकू, हुक्का, सिगार रैप्ड, चेरूट, बर्ले, ओरिएंटल, चबाने वाला तम्बाकू, और बहुत कुछ शामिल है।
भारत के प्रमुख उत्पादक राज्यों में गुजरात(कुल उत्पाद का 41%), आंध्र प्रदेश (कुल उत्पाद का 22%), कर्नाटक (कुल उत्पाद का 16%), तेलंगाना (कुल उत्पाद का 11%) और उत्तर प्रदेश (कुल उत्पाद का 5%) शामिल हैं ।


कैसे बनता है गुटखा ?
गुटखा बनाने के लिए तंबाकू, सुपारी, चूना, केसर, कत्था, इलायची और कुछ विशेष मसालों का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, उनमें से किसी में भी निकोटिन की मौजूदगी या मात्रा का जिक्र नहीं किया जाता। लेकिन, इनमें तंबाकू की  मात्रा अधिक होती है। दरअसल, NIH की एक रिपोर्ट की मानें तो,  गुटखा और पान मसाला के दस अलग-अलग ब्रांडों की औसत मात्रा में 6.26 ± 2.65 और 3.25 ± 0.7 mg/g तंबाकू थी। इसके अलावा प्रति ग्राम तंबाकू में निकोटिन की मात्रा में 2.4 से 4.3 मिलीग्राम तक भी मिली है। 


गुटखा तंबाकू के नुकसान
ओरल कैंसर के 91 फीसदी रोगियों की केस हिस्ट्री का अध्ययन किया गया तो इसकी जड़ में गुटखा और तंबाकू निकली है। तम्बाकू युक्त गुटखा चबाने से कई तरह के कैंसर हो सकते हैं, जिसमें मुंह, जीभ, मसूड़े, पेट, ग्रासनली (गला) और मूत्राशय का कैंसर शामिल है। भारी मात्रा में इसका सेवन करने वालों को यह भी महसूस हो सकता है कि चबाने वाले तम्बाकू से उनके दांत घिसने और दाग लगने लगते हैं, जिससे मसूड़े भी पीछे हट सकते हैं। नियमित रूप से तम्बाकू चबाने से दिल का दौरा पड़ने का जोखिम भी बढ़ जाता है, क्योंकि यह रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाने के लिए जाना जाता है।



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