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Bangladesh और अल्पसंख्यक Hindu ! अत्याचार का पूरा इतिहास...

बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति से यह स्पष्ट है कि सत्ता का नियंत्रण इस्लामिक कट्टरपंथियों के हाथों में चला गया है. ये वही कट्टरपंथी हैं जिन्होंने तख्तापलट को छात्र आंदोलन की शक्ल देकर बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ कर भागने पर मजबूर कर दिया था . मुख्य सलाहकार और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस नाममात्र के लिए शीर्ष पर हैं, लेकिन पिछले चार महीनों की घटनाओं ने यह बता दिया है कि इस्लामिक कट्टरपंथियों की कठपुतली मुहम्मद युनुस बांग्लादेश की पाकिस्तान से 1971 की मुक्ति की विरासत को खत्म करना चाहते हैं.

बांग्लादेशी हिंदू समुदाय अवामी लीग का समर्थक था जिसकी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ कर भागने पर मजबूर कर दिया गया. अब इस्लामवादियों के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव के कारण बांग्लादेश के हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति और भी अधिक खराब हो गई है. देश में 5 अगस्त के बाद हुए राजनीतिक उठा पटक के बीच हिंदुओं पर खुलेआम अत्याचार के मामले देखने को मिल रहे हैं.

इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (ISKCON) ने शनिवार को आरोप लगाया कि बांग्लादेश की राजधानी ढाका में उसका केंद्र दिन में जला दिया गया. इस्कॉन के कोलकाता के उपाध्यक्ष राधारमण दास ने एक एक्स पोस्ट में कहा, 'बांग्लादेश में इस्कॉन नामहट्टा केंद्र को जला दिया गया. श्री श्री लक्ष्मी नारायण की मूर्तियां और मंदिर के अंदर की सभी वस्तुएं पूरी तरह से जल गईं. केंद्र ढाका में स्थित है. हमलावरों ने तड़के 2-3 बजे के बीच मंदिर के टिन की छत तोड़कर पेट्रोल और ऑक्टेन से आग लगा दी. कुछ दिन पहले इस्कॉन टेंपल को बंद कराया गया और इसके एक दिन बाद ही इस्कॉन के पुजारी चिन्मय कृष्ण दास को भी गिरफ्तार कर लिया गया.बांग्लादेश इतने पर ही नहीं रुका उसने एक दिन बाद चिन्मय कृष्ण दास समेत कई लोगों के एकाउंट को भी फ्रीज कर दिया गया था.
बिगड़ती स्थिति को देखते हुए ISKCON ने बांग्लादेश में अपने पुजारियों से सावधानी बरतने की अपील की है। उन्होंने पुजारियों को सलाह दी कि वे भगवा वस्त्र न पहनने, माथे पर तिलक लगाने और तुलसी की माला पहनने से बचें ताकि उन्हें पहचाना न जा सके। यह स्थिति वहां के हिंदू समुदाय के लिए अत्यधिक असुरक्षा और चिंता का कारण बनी हुई है।


बांग्लादेश बनने की वजह क्या थी ?
वर्ष 1971 मे बांग्लादेश के संस्थापक और निवर्तमान बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता शेख मुजीब-उर-रहमान ने बांग्लादेश को आजाद घोषित किया था. उन्होंने देश के लोगों से स्वतंत्रता संग्राम का आह्वान भी किया. इसके बाद शुरू हुआ स्वतंत्रता संग्राम नौ महीने चला. भारत ने 6 दिसंबर, 1971 को ही बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता दे दी थी. हालांकि तब वो पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा था. 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की सेना के भारत के सामने आत्मसमर्पण करने के साथ ही ये संघर्ष खत्म हुआ. 16 दिसंबर को बांग्लादेश में विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.
बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) में पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ़्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला ख़ान नियाज़ी ने भारतीय सेना के लेफ़्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करके अपनी हार मान ली थी और इस तरह बांग्लादेश औपचारिक तौर पर दुनिया के नक़्शे पर एक नए देश के रूप में उभरकर सामने आया था.
यह कहना ग़लत नहीं होगा कि दक्षिण एशिया के देशों में बांग्लादेश के सबसे क़रीबी संबंध भारत के साथ ही हैं. सिर्फ़ व्यापार के स्तर पर बात करें तो दोनों देशों के बीच 10 अरब डॉलर से ज्यादा का कारोबार होता है, जो पूरे दक्षिण एशिया में सबसे ज़्यादा है.


बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति !
1971 में पाकिस्तान से अलग होकर वजूद में आए बांग्लादेश ने 4 नवंबर 1972 को अपनाए गए नए संविधान में खुद को एक धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और लोकतांत्रिक राष्ट्र घोषित किया था. लेकिन वो ज्यादा समय तक धर्म निरपेक्ष नहीं रहा और 7 जून, 1988 को उसने संविधान में बदलाव कर खुद को इस्लामी राष्ट्र घोषित कर दिया. जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों ने हिंदुओं पर अत्याचार करते हुए आर्थिक और धार्मिक स्तर पर शोषण किया जिसके परिणाम स्वरूप बड़ी संख्या में हिंदू पलायन को मजबूर हुए. 
1951 में बांग्लादेश में हिंदू आबादी करीब 22 फीसदी थी. उसके बाद से हिंदुओं की आबादी में लगातार गिरावट देखने को मिलती है. रिपोर्ट्स के अनुसार, बांग्लादेश की कुल आबादी 17 करोड़ के करीब है जिसमे हिंदुओं की कुल आबादी करीब 7.97 फीसदी जो लगभग 1.35 करोड़ होती है. बांग्लादेश में अभी भी कई हिंदू बहुल इलाके हैं जहां हिंदुओं की आबादी 10 फीसदी से ज्यादा है. 4 जिलो में हिंदुओं की आबादी करीब 20 फीसदी बताई जाती है. 


हिंदू पलायन को बढ़ावा देता कानून 
बांग्लादेश में साल 2021 तक एक भूमि कानून Vested Property Act लागू था. इसके तहत सरकार के पास यह अधिकार था कि वह दुश्मन संपत्ति को अपने कब्जे में ले ले. इस कानून की सबसे ज्यादा मार हिंदुओं को झेलनी पड़ी. इस कानून से बांग्लादेश का करीब-करीब हर हिंदू परिवार प्रभावित हुआ.भले ही इस कानून में कुछ संशोधन किया गया हो लेकिन अभी भी इसके चलते हिंदुओं का पलायन हो रहा है. 


भारत में बांग्लादेशी शरणार्थी
1971 में भारत के बलबूते मिली स्वतंत्रता से पहले बांग्लादेश में हिंदुओं पर भयानक हिंसा का दौर था. लाखों की संख्या में बांग्लादेशी लोग शरण की तलाश में भारत पहुंचे थे. 2004 में यूपीए सरकार ने बताया था कि भारत में करीब 12 लाख अवैध बांग्लादेशी प्रवासी रह रहे हैं. लेकिन 2016 में इस संख्या को करीब 20 लाख बताया गया. जबकि 2018 में गृहमंत्री अमित शाह ने ये आंकड़ा 40 लाख के करीब बताया.
बांग्लादेशी अर्थशास्त्री और प्रोफेसर अबुल बरकत अपनी पुस्तक "हिंदू अल्पसंख्यकों का अभाव: सतत भेदभाव की कहानी" में लिखते हैं कि शत्रु संपत्ति अधिनियम के क्रियान्वयन और निहित संपत्ति अधिनियम के रूप में इसके जारी रहने की जड़ें पाकिस्तान के सामंती-सैन्य तानाशाह शासकों की धर्म-आधारित शासन-नीति में हैं। ये तानाशाह शासक, "पाकिस्तानीकरण" या पाकिस्तान के पूर्ण इस्लामीकरण की अपनी चाहत में बंगाली लोगों और उनकी संस्कृति दोनों से छुटकारा पाना चाहते थे। 1965 से 2006 के बीच शत्रु संपत्ति/निहित संपत्ति अधिनियम के कार्यान्वयन ने 12 लाख परिवारों और 60 लाख हिंदुओं को सीधे प्रभावित किया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी संपत्ति का नुकसान हुआ। बांग्लादेशी हिंदुओं ने 26 लाख एकड़ से अधिक भूमि खो दी, और कई परिवार आर्थिक रूप से निराश्रित हो गए। शोध में पाया गया कि इसने समाज में सांप्रदायिकता और "सामंती मानसिकता" को संस्थागत बना दिया है।


भारत की प्रतिक्रिया
भारत ने अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के इन मामलों को गंभीरता से लिया है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि बांग्लादेश सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सभी नागरिकों, खासकर अल्पसंख्यकों, की सुरक्षा सुनिश्चित करे. भारत ने बढ़ती चरमपंथी हिंसा और हिंदुओं के खिलाफ हो रही घटनाओं पर चिंता जताई है. अब भारत और बांग्लादेश के बीच अच्छे व्यापारिक तथा कूटनीतिक संबंध रहे हैं पर इन घटनाओं से दोनों देशों के बीच संबंधों पर भी असर पड़ सकता है.


निष्कर्ष 
ऊपर दिए गए आंकड़ों को देखें तो बांग्लादेश की तथाकथित लोकतांत्रिक सरकारों ने आजतक हिंदुओं का शोषण ही किया है। फिर चाहे वो बांग्लादेश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले मुजीबुर्रहमान हों या वर्तमान में कमान संभाले इस्लामिक कट्टरपंथी पाकिस्तान समर्थित मोहम्मद युनुस हों सबने हिंदुओं दोहन ही किया है । तब परिस्थितियां नियंत्रण में थीं और भारत बांग्लादेश के मैत्री संबंध का प्रभाव भी था पर आज न बांग्लादेशी सरकार भारत से मित्रवत है और न ही बांग्लादेशी अल्पसंख्यक हिंदुओं से ।

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