यूपी, बिहार या किसी दूसरे राज्य में चुनाव हो कहीं न कहीं से पाकिस्तान का मुद्दा चला ही आता है।
पाकिस्तान, जिन्ना, तालिबान ये शब्द उत्तर प्रदेश की चुनावी बहसों और भाषणों में ख़ूब सुनाई दे रहे हैं. आबादी के लिहाज से भारत के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं.
उत्तर प्रदेश के चुनाव में पाकिस्तान और जिन्ना की गूंज है और इस मुद्दे को सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने- अपने हिसाब से उठा रहे हैं. नफा-नुकसान देखकर सियासी तीर भी छोड़े जा रहे हैं पूर्व में भी ऐसा हुआ है और आगे भी होगा।
उत्तर प्रदेश का पाकिस्तान से कोई सीधा संबंध नहीं है. ना ही उत्तर प्रदेश की सीमा पाकिस्तान से लगती है. लेकिन उत्तर प्रदेश के चुनावी माहौल पर पाकिस्तान और जिन्ना हावी होते जा रहे हैं.
हाल के दिनों में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सबसे पहले अपने वक्तव्य में पाकिस्तान के संस्थापक और भारत की आज़ादी के आंदोलन में शामिल रहे मोहम्मद अली जिन्ना का ज़िक्र किया. इसके बाद जिन्ना राजनीतिक भाषणों और बहसों के केंद्र में आ गए.
वहीं एक साक्षात्कार के दौरान अखिलेश यादव ने कहा कि 'हमारा नंबर वन दुश्मन पाकिस्तान नहीं है, वो तो भाजपा....' उनका ये बयान भी मीडिया की सुर्ख़ियाँ बन गया.
अखिलेश यादव के इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, "जो जिन्ना से करे प्यार, वो पाकिस्तान से कैसे करे इनकार."
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि 'जिन्हें पाकिस्तान दुश्मन नहीं लगता, उन्हें जिन्ना दोस्त लगता है.'
अखिलेश यादव ने चुनावी अभियान के शुरुआती दिनों में मोहम्मद अली जिन्ना को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के समकक्ष खड़ा एक बड़ा मुद्दा भाजपा के सामने परोस कर रख दिया। भाजपा ने इसमें शुरुआती बढ़त बनाई। इसी बयान के आधार पर सीएम योगी आदित्यनाथ का अब्बाजान वाला बयान सामने आया। योगी पिछले दिनों चुनाव को 80 बनाम 20 की बात कर बड़ा संकेत दे चुके हैं। मतलब, अखिलेश के पाकिस्तान पर दिए गए बयान को भाजपा अब इतनी आसानी से जाने देने वाली नहीं है।
पाकिस्तान, जिन्ना, तालिबान और मुग़ल जैसे शब्द सिर्फ़ राजनीतिक बयानबाज़ी तक सीमित नहीं है बल्कि टीवी चैनलों की बहसें इनसे भरी पड़ी हैं जिससे सवाल उठने लगा है कि क्या ऐसे में ज़मीनी मुद्दे पीछे छूट सकते हैं.
कोरोना महामारी, इससे जन्मा आर्थिक संकट, बेरोज़गारी, किसान आंदोलन - ये कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिनकी चर्चा होती रही है. तो क्या ध्रुवीकरण की राजनीति ने जनता के मुद्दों के दबा दिया है?
अब ये सोचना आपको है कि वोट का आधार पाकिस्तान या जिन्ना होंगे या फिर जमीनी मुद्दे।
By : Ashish Kumar
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