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भारत के उस वैज्ञानिक की कहानी जिससे अमेरिका और रूस भी डरते थे

डॉ होमी जहांगीर भाभा यानी परमाणु भौतिकी विज्ञान का ऐसा चमकता सितारा, जिसका नाम सुनते ही हर भारतवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। डॉ होमी जहांगीर भाभा ही वह शख्स थे, जिन्होंने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की, और भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न तथा वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रसर होने का मार्ग प्रसस्त किया।
होमी भाभा जल्द ही भारत को अमेरिका, सोवियत यूनियन, चीन की लीग में खड़ा कर देते, लेकिन 24 जनवरी की मनहूस तारीख को प्लेन क्रैश में भाभा का निधन हो गया। 
1965 की बात है। ऑल इंडिया रेडियो पर डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने एक इंटरव्यू दिया। इस इंटरव्यू में उन्होंने एक ऐसी घोषणा की, जिसने दुनिया के बड़े-बड़े मुल्कों को चौंका दिया। भाभा ने कहा, ‘अगर मुझे छूट मिले, तो मैं 18 महीने में भारत के लिए एटम बम बनाकर दिखा सकता हूं।’ इस इंटरव्यू के 3 महीने बाद 24 जनवरी 1966 को एअर इंडिया उड़ान 101 की दुर्घटना में भाभा समेत 116 लोगों की मौत हो गई दावा किया जाता है कि परमाणु संपन्‍नता की दिशा में तेजी से आगे बढ़ते भारत के कदम रोकने के लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी (CIA) ने उनकी हत्‍या की साजिश रची ... कन्वर्सेशन विद द क्रो नाम की किताब के मुताबिक भारत जैसे देश के परमाणु हथियार बनाने का ऐलान करने के बाद अमेरिका परेशान था क्युकी साल 1945 से ही अमेरिका परमाणु हथियार से लैस इकलौता देश बना हुआ था और नहीं चाहता था की कोई देश खड़ा हो . ..... भाभा के प्लेन हादसे की तहकीकात हुई तो फ्रेंच अधिकारियों ने ना ब्लैक बॉक्स और नाही किसी यात्री के सरीर मिलने की बात कही। ... खाश बात ये है उसके कुछ दिन पहले ही भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहदुर शास्त्री की भी मौत हुई थी वो भी संदिगध परिस्तितियों में। 


 उनके प्रयोगों के बदौलत भारत आज दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु शक्तियों में से एक के रूप में उभरा है। कुछ चंद वैज्ञानिको की सहायता से परमाणु क्षेत्र में अनुसंधान का कार्य शुरू करने वाले डॉ भाभा ने समय से पहले ही परमाणु ऊर्जा की क्षमता और अलग-अलग क्षेत्रों में उसके उपयोग की संभावनाओं की परिकल्पना कर ली 1945 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) के संस्थापक निदेशक थे और ट्रॉम्बे एटॉमिक एनर्जी एस्टैब्लिशमेंट के निदेशक रहे । बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ होमी जहांगीर भाभा 1955 में उन्होंने यूनाइटेड नेशन के परमाडु कार्यक्रमों पर आधारित सभा की अध्यक्षता की जिसमें 73 देशों के 1,428 प्रतिनिधि मौजूद थे।
साल 1948 में भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की, और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसी के साथ साल 1955 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आयोजित ‘शांतिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग’ के पहले सम्मलेन में डॉ. होमी भाभा को सभापति बनाया गया।

 60 के दशक में विकसित देशों का तर्क था कि परमाणु ऊर्जा संपन्न होने से पहले विकासशील देशों को दूसरे पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए। पर भाभा का मानना था की विकास कार्यों में परमाणु ऊर्जा का प्रयोग होना चाहिए और कोई देश अगर आगे बढ़ना चाहता है तो उसे परमाणु ऊर्जा का प्रयोग करना चाहिए पर हा उसका इस्तेमाल हमेसा सही कार्यो में ही हो।    

अगर भाभा पढ़ाई लिखाई दौर की बात करे तो उन्होंने पहले इंजीनिरिंग की पढ़ाई की उसके बाद भवतिक विज्ञानं की पढ़ाई शुरू किया और उसे प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की अगले साल भाभा ने यूरोप में रह कर भवतिक विज्ञानं के छेत्र में शोध कार्य किया उन्होंने कॉस्मिक रेज़लेमेंटरी पार्टिकल्स पर मौलिक अनुसन्धान किया , जिसपे उन्हें कई पुरस्कार मिले और उसके बाद अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय में उनका भी नाम शामिल हो गया ।


By : Prabha Dwivedi 

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