"बवंडरों के बीच" सामाजिक सत्य का दस्तावेज है।
~प्रो.जितेंद्र श्रीवास्तव
कवि,आलोचक,संपादक
अज्ञेय के शब्दों में, हम ‘महान साहित्य’ और ‘महान लेखक’ की चर्चा तो बहुत करते हैं। पर क्या ‘महान पाठक’ भी होता है? या क्यों नहीं होता, या होना चाहिए? क्या जो समाज लेखक से ‘महान साहित्य’ की माँग करता है, उससे लेखक भी पलट कर यह नहीं पूछ सकता कि ‘क्या तुम महान समाज हो?’
सामाजिक ताने बाने की बुनावट कहीं दरक रही है। अधिकार के साथ भागने वाला मन कर्तव्य भूल रहा है। हमें सबकुछ चाहिए लेकिन "कुछ देने" को हम तैयार नहीं होते। स्वस्थ समाज के निर्माण में कुछ देने का महत्व है। कुछ से ही आकाश की ओर की यात्रा तय होती है।
टूटने,बिखरने से जुड़ने की ओर संकेत विलियम अर्नेस्ट हेनली अपनी कविता "अपराजेय" की अंतिम पंक्तियों में करते हैं:
"मैं हूं अपनी नियति का नायक
मैं हूं अपनी आत्मा का सरताज।"
इन्हीं पंक्तियों के साथ नेल्सन मंडेला ने जीवन के 27 वर्ष जेल में खुद को गढ़ा और मुक्ति के आकाश को देखते रहे।
हम सभी के पास अपनी एक जेल है। हम कैद हैं। मुक्ति चाहिए लेकिन...
कल (31/12/2022) TNB के मंच से प्रो.जितेंद्र श्रीवास्तव सर ने "बवंडरों के बीच" किताब से सभी को जोड़ा। प्रो.कौशल पवांर की आत्मकथा अपने शीर्षक के साथ हम सभी को आईना दिखा रही है। हमने कैसा समाज तैयार किया है??
प्रो.जितेंद्र श्रीवास्तव सर ने कहा कि यह ईमानदार आत्मकथा है। जीवन के स्याह और सफेद पक्षों को लिखा गया है: "ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया"
सूत्रवाक्य:
*भारतीय सामाजिक संरचना में वंचना के कई स्तर हैं।
*सामाजिक विकास के बाद भी दलित जीवन बवंडरों के बीच जी रहा है।
*सामाजिक सत्य से उपजी कृतियाँ विरेचन का अवसर देती हैं।
*किताबें मजबूत बनाती हैं।
*सामाजिक,सांस्कृतिक,आर्थिक अभाव संघर्ष को और बड़ा बना देता है।
*आत्मकथा महज व्यक्तिगत दस्तावेज नहीं है
* "बवंडरों के बीच" असंभव तक पहुंचने की यात्रा है।
*दृढ़ संकल्प जीवन को व्यापक और जीवंत बनाता है।
*समझौता कर लेना लक्ष्य को छोटा बनाना है।
*आत्मकथा की सर्जक कौशल पंवार भारतवर्ष की लड़कियों के लिए साहस हैं।
इस जीवन से मिलना जरूरी है क्योंकि:
तब लिखेंगे आप जब भीतर कहीं जीवन बजेगा
दूसरों के सुख-दुखों से आपका होना सजेगा
टूट जाते एक साबुत रोशनी की खोज में जो
जानते हैं- ज़िन्दगी केवल सफ़लता ही नहीं है!
(रामदरश मिश्र)
जीने की ज़िद
रोज कटने का साहस
और उगने का संकल्प...
मैं "बवंडरों के बीच" जीना चाहती हूं...
पत्थर पहले ख़ुद को पत्थर करता है
उसके बाद ही कुछ कारीगर करता है
(मदन मोहन दानिश)
~रश्मि सिंह
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