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प्रतिचयन हमेशा प्रतिनिधित्वकारी होना चहिए: प्रो सुनील महावर

मोतिहारी। 

राजनीति विज्ञान विभाग, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के सहयोग से दस दिवसीय शोध प्रविधि पाठ्यक्रम के आठवें दिवस चार तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया।
सत्ताइसवें तकनीकी सत्र में विषय विशेषज्ञ महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के समाज विज्ञान संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो० सुनील महावर ने अनुसंधान के विभिन्न प्रतिचयन पद्धतियों के बारे में प्रतिभागियों से बात की। उन्होंने विभिन्न विचारको द्वारा प्रतिपादित परिभाषाओं के माध्यम से प्रतिचयन के प्रकार एवं उपयोगों को बताया। प्रो० महावर ने कहा कि प्रतिचयन हमेशा प्रतिनिधित्वकारी होना चहिए। सत्र के अध्यक्ष महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के सह आचार्य डॉ० नरेंद्र कुमार आर्य ने कहा कि किसी भी अनुसंधान के दौरान प्रतिचयन पद्धति का सही चुनाव करना शोधार्थियों के लिए अत्यंत आवश्यक है,अन्यथा अनुसंधान एक दिशाहीन गति को प्राप्त कर लेता है।

अट्ठाइस्वे तकनीकी सत्र में विषय विशेषज्ञ ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो० मुनेश्वर यादव ने अनुसंधान में तत्व मीमांसा की उपयोगिता पर प्रतिभागियों से बात की। प्रो० यादव ने कहा कि राजनीतिक सिद्धांतों को पूर्णता जाने बिना अनुसंधान की गुणवत्ता सुनिश्चित करना असंभव है। अनुसंधान के द्वारा किस प्रकार की थेसिस प्रस्तुत की जा रही है इसकी व्याख्या करना शोधार्थियों के लिए आवश्यक है। सत्र के अध्यक्षीय संबोधन में प्रो० सुनील महावर ने कहा कि किसी भी अनुसंधान के दर्शन को समझने के लिए उसमें तत्व मिमांसा का समावेश होना आवश्यक है।

उन्नतीसवें तकनीकी सत्र में बोलते हुए प्रो० यादव ने सामाजिक अनुसंधान के एपिस्स्टेमिक आधार पर बल दिया। उन्होंने कहा कि अनुसंधान के माध्यम से नए सिद्धांतों का प्रतिपादन होता है। ऐसे सिद्धांत हमेशा अनुभविक तथ्यों से समर्थित होने चाहिए। राजनीति विज्ञान के विभिन्न विचार को एवं सिद्धांतों के माध्यम से उन्होंने वर्तमान में सामाजिक अनुसंधान को किस प्रकार से और प्रभावी एवं गुणवत्तापूर्ण बनाया जा सकता है इस पर प्रतिभागियों से चर्चा की। सत्र के अध्यक्ष डॉक्टर आर्य ने कहा कि वर्तमान समय में सामाजिक अनुसंधान की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि उसे एक तार्किक एवं चिंतनशील रूप प्रदान किया जाए।

तीसवें सत्र में विषय विशेषज्ञ सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक प्रो० ए के वर्मा ने शोध पत्रों के लेखन की तकनीकी बारीकियां के बारे में प्रतिभागियों से बात की। प्रो० वर्मा ने एक शोध पत्र को लिखने में शोधार्थियों को क्या कठिनाइयां होती हैं एवं उन्हें किन-किन चीजों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, विस्तार पूर्वक प्रतिभागियों को बताया। उन्होंने शोध पत्रों की भाषा, क्रमबद्धता, प्रारूप एवं नैतिकता के बारे में बताया। अध्यक्षीय सम्बोधन में प्रो० महावर ने कहा कि शोधार्थियों के लिए शोध पत्र लिखना एक चिंता का विषय रहता है। कई शोधार्थियों के पास उचित ज्ञान का अभाव होता है एवं ऐसे में शोध पत्रों के लेखन की गुणवत्ता में गिरावट आती है। शोध पत्र को हमेशा स्पष्ट, विषय पर केंद्रित एवं क्रमबद्ध तरीके में लिखना चाहिए।

प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए इस पाठ्यक्रम के सह निर्देशक महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डॉ नरेंद्र सिंह ने कहा की यह पाठ्यक्रम शोध के विभिन्न आयामों एवं  शोध के क्षेत्र मे नव विकसित तकनीको को शोधार्थियों तक पहुंचाने में सहायक है।  

इस अवसर पर राजनीति विज्ञान विभाग के आशुतोष, गौरव,निखिल,मनीष,सर्वेश्वर,उज्ज्वल,देवाशीस,संदीप,ऋचा,विजय,कौशल,सुजीत,सचिन एवं अफसाना की उपस्थिति रही।

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