‘इस्लामिक आतंकवाद’ शब्द आज विश्व भर में चर्चा का विषय बन चुका है। यह केवल धार्मिक नाम पर की जाने वाली हिंसा नहीं बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारकों का जटिल मिश्रण है। भारत अपनी विविधता और भौगोलिक विस्तार के कारण इस समस्या से कई रूपों में प्रभावित हुआ है।
भारत में प्रमुख घटनाएँ
1. 1993 मुंबई बम विस्फोट – 12 मार्च को हुए इस हमले में 257 लोग मारे गये। यह भारत में इस्लामिक उग्रवाद की पहली बड़ी घटनाओं में से एक थी।
2. 2008 मुंबई आतंकवादी हमला – पाकिस्तान‑आधारित समूह लैश्कर‑ए‑तैयबा ने समुद्री मार्ग से आकर कई स्थलों पर गोलीबारी और बंधक बनाकर 166 लोगों की जान ली।
3. 2011 दिल्ली हाईकोर्ट बम विस्फोट – इस हमले में 15 लोग मारे गये और कई घायल हुए जिसे इंडियन मुजाहिदीन ने दावा किया।
4. 2016 पठानकोट हमला – पाकिस्तान‑आधारित समूहों ने भारतीय वायुसेना के अड्डे पर हमला किया, जिसमें 7 सैनिक शहीद हुए।
5. 2022 कश्मीर में आतंकवादी मुठभेड़ – कई बार स्थानीय युवाओं के कट्टरपंथी बनने की खबरें सामने आईं, जिससे सुरक्षा बलों को निरंतर सतर्क रहना पड़ा।
इन घटनाओं ने न केवल जीवन को प्रभावित किया, बल्कि सामाजिक सौहार्द और राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी गहरा प्रभाव डाला।
कारणों का बहु‑आयामी विश्लेषण
- धार्मिक व्याख्या का विकृत रूप – कुछ समूह इस्लाम की जिहाद की अवधारणा को हिंसा के साधन के रूप में पेश करते हैं जबकि अधिकांश मुस्लिम विद्वान इसे शांति और आत्म‑संयम का संदेश मानते हैं।
- विदेशी हस्तक्षेप – पड़ोसी देशों से मिलने वाले वित्तीय और प्रशिक्षण समर्थन ने भारतीय मंच पर उग्रवादी नेटवर्क को मजबूत किया है।
- साइबर कट्टरपंथ – इंटरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार‑प्रसार, भर्ती और धन उगाहना अब आसान हो गया है।
इन कारणों को समझना केवल सुरक्षा उपायों से नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक नीतियों के माध्यम से भी आवश्यक है।
सरकारी एवं कानूनी प्रतिक्रिया
- अनलॉइड एक्ट (UAPA) – 1967 में पारित इस अधिनियम को 2004 और 2019 में संशोधित कर आतंकवादी संगठनों और उनके समर्थकों पर कठोर कार्रवाई का प्रावधान किया गया।
- नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) – 2008 में स्थापित, यह एजेंसी आतंकवादी मामलों की जांच और मुकदमेबाजी में प्रमुख भूमिका निभाती है।
- सुरक्षा बलों की क्षमता वृद्धि – सीमा सुरक्षा, इंटेलिजेंस नेटवर्क और समुद्री निगरानी में सुधार किए गये हैं।
- समुदाय‑आधारित पहल – ‘सहयोग’ और ‘सुरक्षा संवाद’ जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से मुस्लिम संगठनों को शामिल कर कट्टरपंथी प्रवृत्तियों को रोकने का प्रयास किया जा रहा है।
इन उपायों के साथ ही मानवाधिकारों की रक्षा और न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता बनाए रखना भी सरकार की प्राथमिकता रही है।
चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा
1. सुरक्षा और अधिकारों का संतुलन – अत्यधिक सुरक्षा उपाय कभी‑कभी नागरिक स्वतंत्रता को सीमित कर सकते हैं, जिससे सामाजिक असंतोष बढ़ सकता है।
2. मिसइन्फॉर्मेशन – सोशल मीडिया पर झूठी खबरें और प्रोपेगैंडा जल्दी फैलते हैं, जिससे सामुदायिक तनाव बढ़ता है।
3. सैन्य कार्यवाही – सैन्य कार्यवाही के माध्यम से पड़ोसी देशों में चल रहे आतंकी ट्रेनिंग सेंटर को ध्वस्त करना, धन और हथियारों की प्रवाह को रोकने में आवश्यक है।
इस्लामिक आतंकवाद एक वैश्विक समस्या है परन्तु भारत में इसका प्रभाव विशेष रूप से सामाजिक ताने‑बाने और राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ता है। इसका समाधान केवल सैन्य या कानूनी उपायों से ही संभव है। जब सरकार, नागरिक समाज और अंतरराष्ट्रीय साझेदार मिलकर सभी धर्म के बीच राष्ट्र-निष्ठा को बढ़ावा देने का काम करेंगे तभी हम इस चुनौती को कम कर पाएँगे और भारत की विविधता को सुरक्षित रख पाएँगे।
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