भारत में हाल के वर्षों में EMI (Equated Monthly Installment) संस्कृति ने तेजी से लोकप्रियता हासिल की है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें उपभोक्ता किसी उत्पाद या सेवा की कीमत को छोटे-छोटे मासिक भुगतानों में बांटकर चुका सकते हैं। चाहे वह स्मार्टफोन, फर्नीचर, कार या घर हो, ईएमआई ने लोगों को अपनी खरीदारी की क्षमता बढ़ाने का एक आसान तरीका प्रदान किया है। हालांकि इसकी सुविधा के साथ-साथ कई नुकसान भी हैं, जो व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं।
EMI संस्कृति का उदय
भारत में मध्यम वर्ग की बढ़ती आकांक्षाओं और डिजिटल भुगतान प्रणालियों के प्रसार ने EMI को एक आकर्षक विकल्प बनाया है। बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स जैसे अमेज़न, फ्लिपकार्ट, और पेटीएम ने "BUY NOW, PAY LATER" की अवधारणा को बढ़ावा दिया है। इसके अलावा क्रेडिट कार्ड और डिजिटल लोन की आसान उपलब्धता ने इस संस्कृति को और बल दिया है। आज छोटी-छोटी वस्तुओं से लेकर बड़े निवेश तक हर चीज के लिए EMI विकल्प उपलब्ध हैं।
EMI के नुकसान
हालांकि EMI सुविधाजनक प्रतीत होती है लेकिन इसके कई नुकसान हैं जो उपभोक्ताओं को दीर्घकालिक वित्तीय संकट में डाल सकते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख नुकसान निम्नलिखित हैं:
1. ऋण का बोझ:
EMI संस्कृति ने लोगों को जरूरत से ज्यादा खर्च करने के लिए प्रेरित किया है। कई बार लोग अपनी आय से अधिक कीमत की वस्तुएं खरीद लेते हैं जिसके परिणामस्वरूप वे कई EMI के जाल में फंस जाते हैं। इससे मासिक आय का बड़ा हिस्सा कर्ज चुकाने में चला जाता है जिससे बचत और अन्य जरूरी खर्चों पर असर पड़ता है।
2. उच्च ब्याज दरें:
EMI योजनाओं में अक्सर ब्याज दरें शामिल होती हैं जो कुल लागत को काफी बढ़ा देती हैं। कुछ "NO COST EMI" योजनाएं भले ही आकर्षक लगें लेकिन इनमें छिपी हुई लागतें, जैसे प्रोसेसिंग फीस या अन्य शुल्क शामिल हो सकते हैं। उपभोक्ता अक्सर इन लागतों को नजरअंदाज कर देते हैं जिससे वे अनावश्यक रूप से अधिक भुगतान करते हैं।
3. आवेगी खरीदारी को बढ़ावा:
EMI की आसान उपलब्धता लोगों को आवेगी खरीदारी के लिए प्रोत्साहित करती है। उपभोक्ता अक्सर ऐसी चीजें खरीद लेते हैं जिनकी उन्हें वास्तव में जरूरत नहीं होती, सिर्फ इसलिए कि वे छोटे-छोटे भुगतानों में खरीद सकते हैं। यह उपभोक्तावाद की संस्कृति को बढ़ावा देता है और वित्तीय अनुशासन को कमजोर करता है।
4. क्रेडिट स्कोर पर प्रभाव:
समय पर EMI न चुका पाने से क्रेडिट स्कोर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। भारत में कई लोग एक साथ कई EMI ले लेते हैं और अगर वे इनका भुगतान करने में चूक जाते हैं तो उनका क्रेडिट स्कोर खराब हो सकता है। इससे भविष्य में ऋण लेना मुश्किल हो सकता है।
5. मानसिक तनाव:
कई EMI के दबाव में लोग मानसिक तनाव का शिकार हो सकते हैं। मासिक आय का बड़ा हिस्सा कर्ज चुकाने में जाने से लोग अपनी अन्य जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते जिससे चिंता और तनाव बढ़ता है।
6. सामाजिक दबाव और दिखावा:
भारत में सामाजिक स्थिति और दिखावे की संस्कृति ने भी EMI को बढ़ावा दिया है। लोग महंगे गैजेट्स, कार या अन्य वस्तुओं को खरीदकर अपनी सामाजिक स्थिति प्रदर्शित करने की कोशिश करते हैं भले ही उनकी वित्तीय स्थिति इसकी इजाजत न दे। यह एक अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा को जन्म देता है।
वित्तीय अनुशासन की जरूरत
EMI के नुकसानों से बचने के लिए वित्तीय अनुशासन जरूरी है। कुछ उपाय जो उपभोक्ता अपना सकते हैं:
- बजट बनाएं: अपनी आय और खर्चों का हिसाब रखें और उसी के अनुसार खरीदारी करें।
- जरूरत बनाम चाहत: केवल जरूरी चीजों के लिए EMI का उपयोग करें न कि हर छोटी-मोटी इच्छा को पूरा करने के लिए।
- ब्याज दरों की जांच: EMI योजना लेने से पहले ब्याज दरों और अन्य शुल्कों की पूरी जानकारी लें।
- आपातकालीन सेविंग: हमेशा एक आपातकालीन सेविंग बनाए रखें ताकि अप्रत्याशित परिस्थितियों में EMI चुकाने में दिक्कत न हो।
- सीमित EMI: एक समय में ज्यादा EMI न लें ताकि आपकी आय का बड़ा हिस्सा कर्ज में न जाए।
EMI संस्कृति ने भारत में उपभोक्ताओं को अपनी खरीदारी की क्षमता बढ़ाने का एक आसान तरीका प्रदान किया है लेकिन इसके साथ आने वाले नुकसान गंभीर हैं। यह संस्कृति लोगों को कर्ज के जाल में फंसा सकती है, उनकी बचत को कम कर सकती है और मानसिक तनाव का कारण बन सकती है। इसलिए उपभोक्ताओं को चाहिए कि वे EMI का उपयोग सोच-समझकर और वित्तीय अनुशासन के साथ करें। केवल जरूरी और योजनाबद्ध खरीदारी के लिए EMI का सहारा लेना चाहिए ताकि वित्तीय स्वतंत्रता और स्थिरता बनी रहे।

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