Ticker

6/recent/ticker-posts

अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ विवाद : वर्तमान स्थिति, इतिहास और प्रभाव


भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध हमेशा से ही महत्वपूर्ण रहे हैं। दोनों देश दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं और इनके बीच का वर्तमान व्यापार अरबों डॉलर का है। हालांकि हाल के समय में टैरिफ (सीमा शुल्क) को लेकर विवाद बढ़ा है जो दोनों देशों की व्यापार नीतियों, राजनीतिक मुद्दों और वैश्विक संबंध का प्रतिफल है। 


टैरिफ का इतिहास

अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ विवाद की जड़ें 2018 में जाती हैं जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर स्टील और एल्यूमिनियम पर टैरिफ बढ़ाया। भारत से आयात होने वाले स्टील पर 25% और एल्यूमिनियम पर 10% टैरिफ लगाया गया। इसके जवाब में भारत ने अमेरिका से आयात होने वाले 28 उत्पादों, जैसे बादाम, सेब और हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिलों पर प्रतिक्रियात्मक टैरिफ लगाया था।

2021 में जो बाइडेन प्रशासन के आने के बाद कुछ राहत मिली। 2023 - 2024 में दोनों देशों ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में लंबित विवादों को सुलझाया और कुछ टैरिफ कम किए गए। उदाहरण के लिए, अमेरिका ने भारत से स्टील और एल्यूमिनियम पर अतिरिक्त टैरिफ हटाए जबकि भारत ने अमेरिकी उत्पादों पर अपने प्रतिक्रियात्मक शुल्क कम किए। यह कदम दोनों देशों के बीच मजबूत रणनीतिक साझेदारी को दर्शाता था खासकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन और उसके के खिलाफ।


ट्रंप की नई टैरिफ नीति

2025 में डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद टैरिफ विवाद फिर से उभरा है। अगस्त 2025 में ट्रंप प्रशासन ने भारत से आयात होने वाले वस्तुओं पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा की जो पहले से मौजूद 25% टैरिफ के ऊपर है जो कुल मिलाकर 50% तक पहुंच गया। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के अनुसार यह फैसला मुख्य रूप से भारत के रूस से तेल खरीदने को लेकर लिया गया जिसे अमेरिका रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का उल्लंघन मानता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका और उसके सहयोगियों ने रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाए थे लेकिन भारत ने ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूसी तेल आयात जारी रखा।

यह नई टैरिफ 7 अगस्त 2025 से प्रभावी हुई और अतिरिक्त 25% टैरिफ 21 दिनों के बाद यानी 28 अगस्त से लागू होने वाली है। ट्रंप ने इसे "भारत की अनुचित व्यापार प्रक्रिया" का जवाब बताया जबकि भारत ने इसे "अनुचित" करार दिया और यूरोपीय संघ (ईयू) तथा अमेरिका के खुद रूस से व्यापार करने पर सवाल उठाया। भारत का तर्क है कि रूसी तेल आयात से वैश्विक ऊर्जा कीमतें स्थिर रहती हैं और यह प्रतिबंधों का सीधा उल्लंघन नहीं है। 

इसके अलावा ट्रंप ने दर्जनों देशों पर व्यापक टैरिफ लगाए हैं जिसमें भारत के अलावा चीन, कनाडा और अन्य शामिल हैं। भारत को 50% टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है, जो 1934 के बाद अमेरिका में आयात पर सबसे ऊंचा औसत टैरिफ स्तर है।


भारत की प्रतिक्रिया और वैश्विक प्रभाव

भारत ने इस फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। नई दिल्ली ने कहा कि यह टैरिफ दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते की भावना के खिलाफ है। भारत के पास अभी समय है जिसमें वह बातचीत के जरिए इस टैरिफ से बच सकता है लेकिन अभी तक कोई समझौता नहीं हुआ। इसके परिणामस्वरूप भारत ने चीन और ब्राजील जैसे देशों के साथ अपने व्यापार संबंध मजबूत करने की दिशा में कदम उठाए हैं। उदाहरण के लिए भारत और चीन ने सीमा विवाद सुलझाने और व्यापार बढ़ाने पर सहमति जताई है जो ट्रंप की टैरिफ नीति का अप्रत्यक्ष प्रभाव माना जा रहा है।

आर्थिक प्रभाव की बात करें तो भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाली वस्तुओं जैसे फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल, आईटी सेवाएं और ऑटो पार्ट्स पर असर पड़ेगा। 2024 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग 200 अरब डॉलर था और यह टैरिफ व्यापार घाटे को बढ़ा सकता है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भी महंगाई बढ़ सकती है क्योंकि आयातित सामान महंगा हो जाएगा। हालांकि दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी बनी रहेगी क्योंकि वे चीन के खिलाफ क्वाड जैसे मंचों पर सहयोग करते हैं।


भविष्य की संभावनाएं

ट्रंप की टैरिफ नीति से वैश्विक व्यापार में बदलाव आ सकता है। भारत आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत घरेलू उत्पादन बढ़ा रहा है जो आयात निर्भरता कम कर सकता है। दोनों देशों के बीच बातचीत जारी है और संभव है कि कोई समझौता हो जाए। विशेषज्ञों का मानना है कि यह टैरिफ अस्थायी हो सकता है लेकिन यह वैश्विक आपूर्ति चेन को प्रभावित करेगा।

Post a Comment

0 Comments