भारत, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र, अपनी चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता के लिए जाना जाता है। निर्वाचन आयोग (ECI) इस प्रक्रिया का आधार है, जो मतदाता सूची की सटीकता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करता है। विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को अद्यतन और शुद्ध करना है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि केवल पात्र नागरिक ही मतदान कर सकें। हाल के वर्षों में, विशेष रूप से बिहार में 2025 में शुरू की गई SIR प्रक्रिया ने व्यापक राजनीतिक चर्चा और विवाद को जन्म दिया है। यह लेख SIR सुधारों, उनकी आवश्यकता, कार्यान्वयन प्रक्रिया, और इसके राजनीतिक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करता है।
विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) क्या है?
SIR एक केंद्रित, समयबद्ध, और घर-घर जाकर की जाने वाली मतदाता सत्यापन प्रक्रिया है, जिसे बूथ स्तर के अधिकारी (Booth Level Officers - BLOs) द्वारा प्रमुख चुनावों से पहले आयोजित किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य मतदाता सूची को सटीक, समावेशी, और दोहराव या त्रुटियों से मुक्त करना है। SIR के तहत, BLOs प्रत्येक घर में जाकर पात्र मतदाताओं की सूची तैयार करते हैं, जिसमें नए पंजीकरण, नाम हटाने, और संशोधन शामिल हैं। यह प्रक्रिया तब शुरू की जाती है जब ECI को लगता है कि मौजूदा मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर त्रुटियाँ हैं या इसे पूरी तरह से पुनर्निर्माण की आवश्यकता है, विशेष रूप से महत्वपूर्ण चुनावों या निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद।
SIR का कानूनी आधार भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 और प्रतिनिधित्व जनता अधिनियम, 1951 की धारा 21 में निहित है, जो ECI को मतदाता सूची तैयार करने और संशोधन करने का अधिकार देता है। बिहार में 2025 में शुरू हुई SIR प्रक्रिया 2003 के बाद पहली व्यापक पुनरीक्षण प्रक्रिया थी, जिसका लक्ष्य था कि कोई भी पात्र नागरिक मतदाता सूची से बाहर न रहे और कोई भी अपात्र व्यक्ति इसमें शामिल न हो।
SIR की आवश्यकता
भारत जैसे विशाल और विविध देश में मतदाता सूची को अद्यतन रखना एक जटिल कार्य है। समय के साथ, मतदाता सूची में कई समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे:
दोहरे मतदाता: कई मतदाताओं के नाम एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में दर्ज हो सकते हैं, जो पहले की विकेंद्रीकृत प्रणाली के कारण हुआ। ECI ने अब ERONET (निर्वाचन रोल प्रबंधन प्रणाली) के माध्यम से केंद्रीकृत डेटाबेस लागू किया है, लेकिन पुरानी त्रुटियाँ अभी भी मौजूद हैं।
फर्जी मतदाता: कुछ क्षेत्रों में, गैर-नागरिकों या फर्जी पहचान वाले व्यक्तियों के नाम मतदाता सूची में शामिल होने की शिकायतें रही हैं।
मृत या स्थानांतरित मतदाता: मृत व्यक्तियों या स्थायी रूप से स्थानांतरित हो चुके लोगों के नाम सूची में बने रहना एक आम समस्या है।
चुनावी धोखाधड़ी: राजनीतिक दलों द्वारा मतदाता सूची में हेरफेर की आशंकाएँ, जैसे कि नकली मतदाताओं को जोड़ना, समय-समय पर उठती रही हैं।
SIR का उद्देश्य इन समस्याओं को दूर करना है ताकि "एक व्यक्ति, एक वोट" का सिद्धांत लागू हो और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जनता का विश्वास बना रहे।
बिहार में SIR प्रक्रिया (2025)
बिहार में 2025 में शुरू हुई SIR प्रक्रिया ने विशेष ध्यान आकर्षित किया, क्योंकि यह राज्य विधानसभा चुनावों से ठीक पहले शुरू की गई थी। ECI ने 1 जुलाई 2025 को योग्यता तिथि (qualifying date) के आधार पर इस प्रक्रिया को शुरू किया, जिसमें 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी पात्र नागरिकों को शामिल करने का लक्ष्य था। प्रक्रिया के प्रमुख चरण निम्नलिखित थे:
घर-घर सत्यापन: ECI ने 77,895 BLOs और अतिरिक्त 20,603 BLOs को नियुक्त किया, साथ ही 4 लाख स्वयंसेवकों, सरकारी अधिकारियों, और NCC कैडेट्स को कमजोर वर्गों की सहायता के लिए तैनात किया।
प्रारूप मतदाता सूची का प्रकाशन: 1 अगस्त 2025 को प्रारूप मतदाता सूची प्रकाशित की गई, जिसमें 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 7.24 करोड़ ने दस्तावेज जमा किए।
दावे और आपत्तियाँ: मतदाताओं और राजनीतिक दलों को 1 सितंबर 2025 तक दावे और आपत्तियाँ दर्ज करने का समय दिया गया। अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित होने वाली थी।
नाम हटाने के कारण: ECI ने 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाने के कारणों में मृत्यु (22.34 लाख), स्थायी रूप से स्थानांतरित/अनुपस्थित (36.28 लाख), और एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत (7.01 लाख) शामिल किए।
ECI ने यह सुनिश्चित करने का दावा किया कि कोई भी पात्र मतदाता सूची से बाहर न रहे, और इसके लिए पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई गई, जिसमें सभी हटाए गए नामों की सूची जिला मजिस्ट्रेटों और मुख्य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइटों पर अपलोड की गई।
राजनीतिक पहलू और विवाद
SIR प्रक्रिया, विशेष रूप से बिहार में, कई राजनीतिक विवादों का केंद्र बन गई। विभिन्न राजनीतिक दलों और नागरिक समाज समूहों ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए, जिसके परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दायर की गईं।
1. मतदाता बहिष्करण का खतरा
विपक्षी दलों, जैसे कि राष्ट्रीय जनता दल (RJD), तृणमूल कांग्रेस, और कांग्रेस, ने आरोप लगाया कि SIR प्रक्रिया से गरीब, आदिवासी, और प्रवासी मजदूरों जैसे कमजोर वर्गों के मतदाताओं का बड़े पैमाने पर बहिष्करण हो सकता है। उनका तर्क था कि दस्तावेज़ीकरण की सख्त आवश्यकताएँ, जैसे जन्म तिथि और नागरिकता के प्रमाण, बिहार जैसे उच्च गरीबी और प्रवास वाले राज्य में कई लोगों के लिए मुश्किल साबित हो रही हैं। उदाहरण के लिए, बिहार के अमोर ब्लॉक में, लगभग 2 लाख मतदाताओं में से 40,000 के नाम हटाए गए, जिसमें कई महिलाएँ थीं जो विवाह के बाद अन्य ब्लॉकों में स्थानांतरित हुई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस चिंता को स्वीकार किया और ECI को आधार, मतदाता पहचान पत्र, और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज़ों को स्वीकार करने का सुझाव दिया।
2. समयबद्धता पर सवाल
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओ.पी. रावत ने कहा कि SIR को आदर्श रूप से विधानसभा चुनावों से कम से कम एक वर्ष पहले आयोजित किया जाना चाहिए ताकि पर्याप्त समय में सुधार और आपत्तियाँ दर्ज की जा सकें। बिहार में, SIR की शुरुआत चुनावों से केवल कुछ महीने पहले होने के कारण इसे "वोटबंदी" का नाम दिया गया, जिसे विपक्ष ने नोटबंदी और लॉकडाउन जैसे उपायों से जोड़ा।
3. राजनीतिक हेरफेर के आरोप
कई विपक्षी दलों ने SIR को सत्तारूढ़ दल के पक्ष में मतदाता सूची में हेरफेर करने का एक उपकरण बताया। तृणमूल कांग्रेस और RJD जैसे दलों ने दावा किया कि यह प्रक्रिया कुछ समुदायों को लक्षित कर रही है। हालांकि, ECI ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी है और सभी हटाए गए नामों की जानकारी सार्वजनिक की गई है।
4. आधार लिंकिंग का मुद्दा
SIR के तहत मतदाता सूची को आधार से जोड़ने का प्रस्ताव भी विवादास्पद रहा। स्टैंडिंग कमेटी ऑन पर्सनल, पब्लिक ग्रीवांसेज, लॉ एंड जस्टिस ने सुझाव दिया कि आधार लिंकिंग स्वैच्छिक होनी चाहिए और गैर-नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल होने से रोकने के लिए वैकल्पिक तंत्र विकसित किए जाने चाहिए। गोपनीयता के अधिकार को लेकर चिंताएँ भी उठीं, क्योंकि आधार डेटा का दुरुपयोग एक गंभीर मुद्दा है।
निष्कर्ष और सुझाव
SIR एक आवश्यक प्रक्रिया है जो भारत की चुनावी प्रणाली को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालांकि, इसके कार्यान्वयन में पारदर्शिता, समावेशिता, और समयबद्धता सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट के सुझावों, जैसे आधार और राशन कार्ड को स्वीकार करना, और ECI के पारदर्शी दृष्टिकोण ने इस प्रक्रिया को और विश्वसनीय बनाने की दिशा में कदम उठाए हैं।
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