भारत में लंबे समय से बेरोजगारी एक प्रमुख मुद्दा रहा है,बेरोजगारी और गरीबी की समस्या को कम करने के लिए कई प्रयास भी किए गए पर हालत ऐसे हों चुके है कि ना ही बेरोजगारी कम हो रही और ना ही गरीबी। राजनीतिक पार्टी कोई भी हो बस चुनाव होने तक बड़े बड़े वादे कर जाते है और फिर सरकार बनने के बाद अपने मुद्दे ही भूल जाते है, ऐसे में कब तक जनता गरीबी और बेरोजगारी की मार झेलेगी।
हालांकि 90 के दशक में निजीकरण और उदारीकरण जैसी नई आर्थिक नीतियों के पर्दापण करने के साथ ही भारत में रोजगार के विभाग को थोड़ा बहुत समर्थन मिला,इन नीतियों के कारण बहुत सारे उद्योगों का विकास भी हुआ,जिसकी वजह से बेरोजगारी के आंकड़ों में कमी देखी गई, परंतु यह विकास शहरी क्षेत्र तक ही सीमित रहा,ग्रामीण क्षेत्र को इससे वंचित रहना पड़ा,जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति शहरी क्षेत्रों से भी ज्यादा दयनीय है।
इन हालातों के पीछे बड़ा कारण यह भी है की आजादी के बाद जब राष्ट्र का शासन नेताओ के हाथ में गया, तो उन्होंने बस औद्योगीकरण और शहरो के विकास तक ही अपने ध्यान को केंद्रित रखा,जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगो के जीवन शैली में सुधार लाने के लिए कुछ भी तरीके से सुनिश्चित नहीं किया गया।
*बेरोजगारी के कारण*:-
बढ़ती बेरोजगारी ग्रामीण एवं शहरी दोनो क्षेत्रों के लिए एक जटिल समस्या है,जिसके कई कारण हैं
(1)बढ़ती जनसंख्या
(2)कृषि का पिछड़ापन
(3) वृद्धि की धीमी गति
वैसे तो और भी बहुत सारे कारण है पर मूल कारणों में से एक शिक्षा और कौशल की कमी भी है।
*बढ़ती बेरोजगारी के लिए आम आदमी भी जिम्मेदार*
•भारत एक विशाल जनसंख्या वाला राष्ट्र है,ऐसे में जनसंख्या आबादी जितनी तेजी से बढ़ रही है,आर्थिक स्तर और रोजगार के अवसर उतने ही तेजी से गिरते जा रहे है, भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के लिए यह कतई संभव नहीं है कि इतनी बड़ी जनसंख्या को रोजगार दिलाया जा सके क्योंकि यहां रोजगार की तलाश कर रहे व्यक्तियों को संख्या साधनों और उपलब्ध अवसरों की संख्या से कही अधिक है ऐसे में आम आदमी को अपनी इच्छास्वरूप जनसंख्या नियंत्रण के रोकथाम के लिए सोचनी चाहिए।
परंतु बेरोजगारी से जुड़ा मसला केवल बढ़ती जनसंख्या तक ही सीमित नहीं है, हमारी व्यवस्था और उसमे व्याप्त कमियां भी इसके लिए प्रमुख रूप से उतरदायी है।
इतना ही नहीं विकास और औद्योगीकरण के नाम पर हमारी सरकारें बड़े बड़े पूंजीपतियों व कंपनियों के लिए कम मूल्य देके खेतिहर किसानों की जमीन पे अधिग्रहण कर लेती है और उन्हें यह आश्वासन देती है कि जिनकी भी भूमि अधिग्रहित की गई है,उद्योग की स्थापना हो जाने के बाद परिवार की किसी एक सदस्य को उसमे नौकरी दी जाएगी परंतु हकीकत यह है कि इस आश्वाशन के नाम पे उन्हें बस मुआवजे की जो राशि मिलती है इससे ही वो अपने परिवार का पालन-पोषण करता है,और इस तंगी से विवश होकर आत्महत्या करने को मजबूर हो जाता है।
वही दूसरी तरफ भ्रष्टाचार भी बेरोजगारी की समस्या को बढ़ावा दे रहा है,सरकार ग्रामीण इलाको में लोगो के जीवन स्तर को उठाने के लिए रोजगार सबंधित योजनाएं चल रहीं है लेकिन निजी तौर पे भ्रष्टाचार की वजह से किसी जरूरतमंद को इसका फायदा नहीं मिल पाता है,ऐसे में सारे प्रयास खोखले और बस कागजों में नजर आते है।
*कोरोना की वजह से बढ़ती बेरोजगारी*:-
देश में बेरोजगारी से लोग परेशान थे ही की पिछले साल अप्रैल में कोरोना महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन की वजह से बेरोजगारी दर 23.52 फीसदी हो गई हालांकि इसके बाद इस दर में धीरे धीरे गिरावट भी आने लगी,वही दूसरी तरफ कोरोना को दूसरी लहर और भी खतरनाक साबित हुई और इसके चलते बेरोजगारी की दर में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई, एक रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान 1 करोड़ से अधिक लोगो की नौकरी चली गई,इस व्यापक महामारी की वजह से सरकार के अनावश्यक खर्चे भी बढ़े जिसकी वजह से महंगाई पर इसका सीधा सीधा असर दिखा,जहा एक तरफ बेरोजगारी,वही दूसरी तरफ महंगाई ने आम जनता की कमर तोड़ कर ही रख दी।
*निष्कर्ष:-*
भारत में बढ़ती बेरोजगारी के सभी कारकों पे अध्यन्न करके और एक एक करके अगर इसे घटाने का प्रयास किया जाए तो इस समस्या को समाप्त करना आसान हो सकता है।
By : Aastha Rani
1 Comments
It is the biggest problem of our country
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