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सोशल मीडिया पर भारतीय पत्रकारों का चरित्र हनन


सोशल मीडिया के युग में जहां सूचना का आदान-प्रदान तत्काल होता है वहां नैतिकता की गिरावट और चरित्र हनन की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। विशेष रूप से भारतीय पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है जहां ट्रोलिंग, फेक न्यूज और व्यक्तिगत हमलों के माध्यम से उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल किया जाता है। यह न केवल पत्रकारिता की विश्वसनीयता को प्रभावित करता है बल्कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कमजोर करता है।


सोशल मीडिया की भूमिका

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे ट्विटर (अब X), Facebook और Instagram ने सूचना के प्रसार को आसान बनाया है लेकिन साथ ही यह असत्यापित सामग्री, ट्रोलिंग और चरित्र हनन के लिए एक हथियार बन गया है। भारतीय मीडिया में नैतिकता की गिरावट स्पष्ट है जहां टीआरपी की दौड़ में चैनल और पत्रकार पूर्वाग्रहपूर्ण रिपोर्टिंग करते हैं।

यह गिरावट पत्रकारों पर भी प्रभाव डालती है जहां वे खुद ट्रोलिंग का शिकार होते हैं यदि वे मुख्यधारा से अलग राय रखते हैं।

सोशल मीडिया पर नैतिकता के ह्रास का एक प्रमुख कारण प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही की कमी है। महिलाओं पत्रकारों को विशेष रूप से निशाना बनाया जाता है जहां उन्हें बलात्कार, अपहरण और मौत की धमकियां मिलती हैं। दक्षिण एशिया में महिला पत्रकारों को सेंसरशिप, घृणा और भय का सामना करना पड़ता है जो चरित्र हनन के रूप में प्रकट होता है।


भारतीय पत्रकारों पर चरित्र हनन

भारतीय पत्रकारों पर चरित्र हनन की घटनाएं असंख्य हैं। Gauri Lankesh (एक प्रमुख पत्रकार और हिंदू राष्ट्रवादी राजनीति की आलोचक) को 2017 में उनके घर के बाहर गोली मार दी गई। उनकी हत्या से कुछ दिन पहले वे डिसइनफॉर्मेशन पर एक लेख प्रकाशित करने वाली थीं और उन्हें "चरित्र हनन" के आरोपों का सामना करना पड़ा था।

इसी तरह टीवी मीडिया की वरिष्ठ पत्रकार चित्रा त्रिपाठी हाल ही में सोशल मीडिया ट्रोलिंग और धमकियों का सामना कर रही हैं। उनपर आरोप यह लगाया जा रहा है कि वो गोरखपुर के भाजपा सांसद रवि किशन के आवास पर किसी पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल हुई थी। ट्रोलर्स के हिसाब से पत्रकार का व्यक्तिगत जीवन नहीं हो सकता । जबकि एक पत्रकार भी आम व्यक्ति ही है जिसका अपना एक जीवन और अपने संबंध है।

इसके अलावा भारतीय संसद की विपक्षी टीम और पाकिस्तानी पत्रकारों की शैली समान है जहां बिना सबूत के आरोप लगाना आम बात है।

2025 में भी स्थिति नहीं बदली है। Mukesh Chandrakar जैसे फ्रीलांस पत्रकारों की हत्या हो रही है और रिपोर्टिंग के लिए धमकियां मिल रही हैं। तेलंगाना में दो महिला पत्रकारों को मुख्यमंत्री के खिलाफ ट्रोलिंग के आरोप में गिरफ्तार किया गया।


नैतिकता बहाली की आवश्यकता

यह गिरावट न केवल पत्रकारों को प्रभावित करती है बल्कि समाज की नैतिकता को भी कमजोर करती है। मीडिया को सत्ता का चाटुकार बनने के बजाय सत्य की रक्षा करनी चाहिए। सोशल मीडिया कंपनियों को जवाबदेह बनाना, कानूनी कार्रवाई और पत्रकारिता में नैतिक प्रशिक्षण आवश्यक है। अन्यथा चरित्र हनन और ट्रोलिंग की यह संस्कृति लोकतंत्र को खोखला कर देगी।

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