एशियाई देशों में शासन असंतुलन एक गंभीर और जटिल मुद्दा है जो श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों में विशेष रूप से देखा जा सकता है। इन देशों में शासन असंतुलन के कई रूप सामने आते हैं जैसे भ्रष्टाचार, राजनीतिक अस्थिरता, कमजोर संस्थागत ढांचा और सामाजिक-आर्थिक असमानता।
श्रीलंका में शासन असंतुलन
श्रीलंका ने हाल के वर्षों में गंभीर शासन संकट का सामना किया है। 2022 में देश में आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता ने बड़े पैमाने पर जन आंदोलन को जन्म दिया, जिसके परिणामस्वरूप तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा। श्रीलंका में शासन असंतुलन के प्रमुख कारण हैं:
1. केंद्रित सत्ता और परिवारवाद: राजपक्षे परिवार का दशकों तक राजनीति पर प्रभुत्व रहा। सत्ता का अत्यधिक केंद्रीकरण और परिवार के सदस्यों को प्रमुख पदों पर नियुक्त करना भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन का कारण बना।
2. आर्थिक कुप्रबंधन: गलत आर्थिक नीतियों, जैसे भारी विदेशी ऋण और अनियोजित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं ने देश को दिवालियापन की कगार पर ला खड़ा किया।
3. जातीय और सामाजिक तनाव: तमिल और सिंहली समुदायों के बीच लंबे समय से चला आ रहा तनाव शासन को और जटिल बनाता है। अल्पसंख्यकों के प्रति समावेशी नीतियों की कमी ने सामाजिक एकता को कमजोर किया।
4. संस्थागत कमजोरी: स्वतंत्र न्यायपालिका और निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया की कमी ने लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर किया।
बांग्लादेश में शासन असंतुलन
बांग्लादेश में हाल के वर्षों में शेख हसीना के नेतृत्व में आर्थिक प्रगति तो हुई, लेकिन शासन असंतुलन के कई पहलू अभी भी मौजूद हैं। 2024 में बड़े पैमाने पर जन आंदोलनों ने शेख हसीना को सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर किया जो शासन की समस्याओं का स्पष्ट संकेत है। इसके प्रमुख कारण हैं:
1. लोकतंत्र का कमजोर होना: शेख हसीना की सरकार पर विपक्ष को दबाने और चुनावों में धांधली के आरोप लगे। प्रेस स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर किया।
2. भ्रष्टाचार: बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग ने जनता का विश्वास कम किया। सरकारी संसाधनों का गलत उपयोग और पक्षपात ने असंतुलन को बढ़ावा दिया।
3. आर्थिक असमानता: हालांकि बांग्लादेश ने आर्थिक विकास में सफलता हासिल की, लेकिन इसका लाभ समाज के सभी वर्गों तक समान रूप से नहीं पहुंचा। बेरोजगारी और गरीबी ने जन असंतोष को बढ़ाया।
4. संस्थागत स्वतंत्रता की कमी: स्वतंत्र संस्थाओं, जैसे न्यायपालिका और चुनाव आयोग, पर सरकारी हस्तक्षेप ने शासन की गुणवत्ता को प्रभावित किया।
नेपाल में शासन असंतुलन
नेपाल में बार-बार सरकार परिवर्तन और संवैधानिक अस्थिरता ने शासन असंतुलन को जन्म दिया है। 2008 में राजशाही के अंत के बाद से देश में लोकतंत्र स्थापित करने की कोशिशें जारी हैं लेकिन कई चुनौतियां बरकरार हैं।
1. राजनीतिक अस्थिरता: नेपाल में बार-बार सरकारें बदलने और गठबंधन टूटने की स्थिति ने नीति निर्माण में निरंतरता की कमी पैदा की है।
2. भ्रष्टाचार और नौकरशाही: भ्रष्टाचार ने प्रशासनिक व्यवस्था को कमजोर किया है। सरकारी योजनाओं का लाभ आम जनता तक नहीं पहुंच पाता।
3. जातीय और क्षेत्रीय विभाजन: नेपाल की विविध जातीय और क्षेत्रीय संरचना ने समावेशी शासन को चुनौतीपूर्ण बनाया है। मधेसी और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के मुद्दों को संबोधित करने में कमी रही है।
4. कमजोर अर्थव्यवस्था: सीमित संसाधनों और बुनियादी ढांचे की कमी ने विकास को बाधित किया है, जिससे शासन की प्रभावशीलता कम हुई है।
शासन असंतुलन के सामान्य कारण
इन तीनों देशों में शासन असंतुलन के कुछ सामान्य कारण हैं:
1. ऐतिहासिक और औपनिवेशिक प्रभाव: औपनिवेशिक काल की विरासत ने इन देशों में कमजोर संस्थागत ढांचे को जन्म दिया जो आज भी शासन को प्रभावित करता है।
2. सामाजिक-आर्थिक असमानता: गरीबी, बेरोजगारी और सामाजिक असमानता ने जनता का सरकार पर भरोसा कम किया है।
3. कमजोर लोकतांत्रिक संस्थाएं: स्वतंत्र न्यायपालिका, निष्पक्ष चुनाव और पारदर्शी प्रशासन की कमी ने शासन को अस्थिर किया है।
4. बाहरी प्रभाव: विदेशी हस्तक्षेप और भू-राजनीतिक दबाव ने इन देशों की नीति निर्माण प्रक्रिया को प्रभावित किया है।
श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में शासन असंतुलन का मूल कारण कमजोर संस्थागत ढांचा, भ्रष्टाचार और सामाजिक-आर्थिक असमानता है। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए पारदर्शी और समावेशी शासन, मजबूत लोकतांत्रिक संस्थाओं का निर्माण और आर्थिक सुधारों की आवश्यकता है। इन देशों को न केवल आंतरिक सुधारों पर ध्यान देना होगा बल्कि क्षेत्रीय सहयोग और वैश्विक समर्थन का भी लाभ उठाना होगा ताकि शासन में संतुलन स्थापित हो सके।
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