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बिहार में रोजगार की बिगड़ती स्थिति और 2025 विधानसभा चुनाव: क्या जनसुराज है नया विकल्प ?


बिहार जो कि भारत का एक प्रमुख राज्य है, लंबे समय से आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है। 29 अगस्त 2025 की तारीख है और विधानसभा चुनाव नजदीक आ चुके हैं। चुनाव आयोग द्वारा चुनाव अक्टूबर - नवंबर में कराए जाने की संभावना है। इस बार का चुनाव विशेष रूप से रोजगार की बिगड़ती स्थिति पर केंद्रित है जहां युवाओं की बेरोजगारी, पलायन और आर्थिक पिछड़ापन मुख्य मुद्दे बन चुके हैं। बिहार की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है लेकिन औद्योगिक विकास की कमी ने लाखों युवाओं को राज्य से बाहर नौकरी की तलाश में मजबूर कर दिया है। विभिन्न रिपोर्ट्स और सर्वेक्षणों से पता चला कि बिहार में बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत से ऊपर है और यह जनसुराज जैसी पार्टियों के चुनाव प्रचार में प्रमुख भूमिका निभा रही है।


बिहार में रोजगार की बिगड़ती स्थिति: आंकड़े और वास्तविकता

बिहार की अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। 2022-23 में राज्य की बेरोजगारी दर 3.9% थी जो राष्ट्रीय औसत 3.2% से थोड़ी अधिक है। हालांकि कुछ रिपोर्ट्स में यह दर काफी ज्यादा बताई गई है जैसे कि एक सर्वेक्षण में 19.1% तक पहुंच गई। जुलाई 2025 के पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के अनुसार भारत में कुल बेरोजगारी दर 5.2% है लेकिन बिहार में युवा बेरोजगारी विशेष रूप से चिंताजनक है। राज्य में 43.4% श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) है जो राष्ट्रीय औसत 56% से कम है, और बेरोजगारी दर 3.4% है।

बिहार को "बेरोजगारी का केंद्र" कहा जा रहा है जहां लाखों युवा शिक्षा पूरी करने के बाद भी नौकरी नहीं पा रहे। राज्य से बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है करीब 50% से अधिक परिवारों में कोई न कोई सदस्य बाहर काम करने जाता है।  बिहार इकोनॉमिक सर्वे 2024-25 में बताया गया है कि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा उपाय अपर्याप्त हैं और रोजगार सृजन मुख्य रूप से सरकारी योजनाओं पर निर्भर है। ग्रामीण इलाकों में MNREGA जैसी योजनाओं का क्रियान्वयन कमजोर है 2023-24 में औसत रोजगार दिन 43.85 ही थे जबकि गारंटी 100 दिनों की है।  कृषि पर निर्भरता के कारण किसानों की आय कम है और 2006 में APMC एक्ट समाप्त होने से MSP की गारंटी नहीं मिलती। 

कोविड-19 के बाद स्थिति और खराब हुई। डेमोनेटाइजेशन और GST ने छोटे व्यवसायों को प्रभावित किया जिससे अनौपचारिक नौकरियां खत्म हुईं। गरीबी दर 33% से ऊपर है, और प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे कम है। युवाओं में NEET (नॉट इन एजुकेशन, एम्प्लॉयमेंट ऑर ट्रेनिंग) दर 32% है जो राष्ट्रीय स्तर पर सबसे ऊंची है। ये आंकड़े बताते हैं कि बिहार की अर्थव्यवस्था में सुधार की तत्काल आवश्यकता है अन्यथा पलायन और सामाजिक अशांति बढ़ सकती है।


चुनाव प्रचार में रोजगार का मुद्दा: पार्टियों की रणनीति और वादे

2025 विधानसभा चुनाव में बेरोजगारी मुख्य चुनावी मुद्दा बन चुका है। एनडीए (NDA) और इंडिया (INDIA) गठबंधन के बीच कड़ी टक्कर है जबकि प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी नया विकल्प बनकर उभर रही है। युवा मतदाता जाति से परे रोजगार, शिक्षा और विकास पर ध्यान दे रहे हैं।

नीतीश कुमार की जेडीयू (JDU) और बीजेपी (BJP) वाली एनडीए सरकार ने जुलाई 2025 में 1 करोड़ युवाओं को नौकरी और रोजगार के अवसर देने का वादा किया है।  कैबिनेट ने अगले पांच वर्षों (2025-2030) में यह लक्ष्य तय किया है जिसमें औद्योगिक विकास के लिए विशेष पैकेज शामिल है— मुफ्त जमीन, जीएसटी राहत और सब्सिडी। नीतीश सरकार सात निश्चय-2 योजना के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और कृषि पर जोर दे रही है। हालांकि, विपक्ष इसे "जुमला" बता रहा है क्योंकि पिछले 20 वर्षों में बिहार देश में सबसे पिछड़ा रहा।

आरजेडी (RJD) नेता तेजस्वी यादव बेरोजगारी पर सरकार को घेर रहे हैं। वे कहते हैं कि "गुजरात पर ध्यान, बिहार को ज्ञान" वाली नीति नहीं चलेगी। कांग्रेस ने "हर घर अधिकार" अभियान शुरू किया, जिसमें रोजगार और स्वास्थ्य का अधिकार देने का वादा है। जून 2025 में कांग्रेस ने बेरोजगारी के खिलाफ राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन किए। राहुल गांधी ने कहा कि बिहार के युवा अब भाषण नहीं रोजगार चाहते हैं।

प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी जाति-निरपेक्ष राजनीति पर जोर दे रही है। वे सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे और शिक्षा, रोजगार, पलायन रोकने पर फोकस है। पीके नीतीश को "थका हुआ नेता" कहते हैं और एनडीए-आरजेडी दोनों पर हमला बोल रहे हैं।  पार्टी युवाओं और महिलाओं को 40 सीटों पर उम्मीदवार बना रही है।

इसके अलावा "वोट चोरी" का मुद्दा गर्म है। 2025 के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन में 65 लाख वोटरों को हटाया गया जिसमें अल्पसंख्यक और प्रवासी प्रभावित हुए। विपक्ष इसे चुनावी धांधली बता रहा है।भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था और कृषि संकट भी मुद्दे हैं।


चुनाव का भविष्य और युवाओं की भूमिका

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में रोजगार की स्थिति निर्णायक साबित हो सकती है। एनडीए फिलहाल आगे दिख रहा है लेकिन जन सुराज और इंडिया गठबंधन वोट काट सकते हैं।

युवा मतदाता बदलाव चाहते हैं और अगर बेरोजगारी पर ठोस कदम नहीं उठे तो परिणाम अप्रत्याशित हो सकते हैं। बिहार को विकास, उद्योग और रोजगार की जरूरत है, वादों से नहीं, कार्रवाई से। चुनाव के नतीजे राज्य के भविष्य को तय करेंगे।

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1 Comments

  1. बिहार में बहार है, नीतीश कुमार है,
    और फिर लोग उनका ही कर रहे इंतज़ार है😐

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