Vivek Agnihotri द्वारा निर्देशित फिल्म 'The Bengal Files' ने रिलीज के ठीक बाद ही एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। यह फिल्म 1946 के डायरेक्ट एक्शन डे के दौरान कोलकाता में हुए साम्प्रदायिक दंगों पर आधारित है जहां हजारों हिंदुओं का नरसंहार हुआ था। फिल्म सत्य को उजागर करने का प्रयास करती है लेकिन West Bengal में इसके प्रदर्शन पर अनौपचारिक प्रतिबंध लगाने की कोशिशों ने राजनीतिक तनाव को चरम पर पहुंचा दिया है। कई लोग इसे एंटी-नेशनल तत्वों की साजिश बता रहे हैं जो राष्ट्रवादी आवाज को दबाने पर तुले हुए हैं।
फिल्म का विवादास्पद सफर
'द बंगाल फाइल्स' विवेक अग्निहोत्री की 'फाइल्स' सीरीज का तीसरा भाग है जिसमें 'The Kashmir Files' और 'The Udaipur Files' जैसी फिल्में शामिल हैं। यह फिल्म ब्रिटिश काल के विभाजन से पहले बंगाल में हुए दंगों की अनकही कहानी को सामने लाती है जहां मुस्लिम लीग की ओर से भड़काई गई हिंसा में हिंदू समुदाय को निशाना बनाया गया था। महात्मा गांधी के प्रयासों से शांति बहाल हुई लेकिन फिल्म ब्रिटिश अधिकारियों, Congress की कमजोरी और हिंदू महासभा की भूमिका को उजागर करती है।
फिल्म की रिलीज 5 सितंबर 2025 को हुई लेकिन पश्चिम बंगाल में प्रमुख सिनेमाघरों में इसका प्रदर्शन नहीं हो सका। निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने इसे 'अनौपचारिक प्रतिबंध' करार दिया है। ट्रेलर लॉन्च के दौरान कोलकाता पुलिस ने आयोजन रोका था जिसे अग्निहोत्री ने राजनीतिक दबाव बताया। सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) ने फिल्म को साफ पास दिया फिर भी मल्टीप्लेक्स चेन जैसे PVR ने स्क्रीनिंग से इनकार कर दिया।
एंटी-नेशनल्स का विरोध: साजिश या राजनीति?
फिल्म के खिलाफ विरोध की लहर तृणमूल कांग्रेस (TMC) समर्थकों और वामपंथी दलों से जुड़े तत्वों की ओर से उठी है। पूर्व मंत्री पूर्णेंदु बसु ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि 'BJP और RSS बंगाल में दंगे भड़काने की कोशिश कर रहे हैं।' फिल्म को 'सांप्रदायिक जहर' फैलाने वाला बताया जा रहा है, जो हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देती है। क्रिटिक्स ने इसे 'द कश्मीर फाइल्स' की तर्ज पर प्रोपगैंडा कहा है।
सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने विरोधियों को 'एंटी-नेशनल' करार दिया है। एक ट्वीट में कहा गया "ये वही लोग हैं जो कश्मीर फाइल्स को भी प्रोपगैंडा कहते थे लेकिन हिंदुओं के नरसंहार की अनदेखी करते हैं।" एक अन्य पोस्ट में लिखा, "उमर खालिद जैसे एंटी-नेशनल्स के लिए न्याय मांगने वाले वही बंगाल फाइल्स को दबाने पर तुले हैं।" X (पूर्व ट्विटर) पर #TheBengalFiles और #SaveDemocracy जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं जहां यूजर्स टीएमसी सरकार पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दबाने का आरोप लगा रहे हैं। विरोध की आड़ में कई घटनाएं दर्ज हुईं। फिल्म के ट्रेलर लॉन्च के बाद एक्टिविस्ट्स ने पोस्टर जलाए जबकि कुछ ग्रुप्स ने सिनेमाघरों के बाहर नारेबाजी की। एक रिपोर्ट के अनुसार फिल्म को 'हिंदू जेनोसाइड' को तोड़-मरोड़ कर पेश करने वाला कहा गया। गोपाल मुखर्जी जैसे ऐतिहासिक फिगर के पोते ने तो एफआईआर तक दर्ज कराई, दावा करते हुए कि फिल्म उनके दादा की छवि खराब करती है।
राष्ट्रवादियों का काउंटर-प्रोटेस्ट
दूसरी ओर संनातन संस्कृति सेवा ट्रस्ट जैसे संगठनों ने सिनेमाघरों के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। 16 सितंबर को स्टार थिएटर के सामने सैकड़ों लोग इकट्ठा हुए नारे लगाते हुए 'बंगाल फाइल्स दिखाओ, सत्य को दबाओ मत!'। पीटीआई की एक वीडियो रिपोर्ट में दिखाया गया कि प्रदर्शनकारी मल्टीप्लेक्स चेन को टैग कर रहे हैं। विवेक अग्निहोत्री ने ट्वीट किया "बंगाल के बंगाली अब सिनेमाघरों के बाहर विरोध कर रहे हैं। सभी बड़े मल्टीप्लेक्स को टैग करके विरोध करें।"
बीजेपी नेता स्वपन दासगुप्ता ने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह ने व्यक्तिगत रुचि लेकर सुरक्षा सुनिश्चित की। पूर्व मेघालय गवर्नर तथागत रॉय ने फिल्म की स्क्रीनिंग में हिस्सा लिया। एक यूजर ने लिखा "ये एंटी-नेशनल्स हिंदू इतिहास को मिटाना चाहते हैं लेकिन सत्य बाहर आएगा।"
राजनीतिक आयाम: BJP vs TMC
यह विवाद बंगाल की राजनीति को और गहरा रहा है। बीजेपी इसे टीएमसी की 'सेंसरशिप' बता रही है जबकि विपक्षी दल लेफ्ट और कांग्रेस ने टीएमसी का साथ दिया। सीपीआई(एम) नेता बिकाश रंजन भट्टाचार्य ने कहा "तथ्यों को तोड़-मरोड़कर फिल्म बनाना कला का अपमान है।" फिल्म की कमर्शियल सफलता भी सवालों के घेरे में है – पहले 7 दिनों में बजट का एक-तिहाई भी नहीं कमा पाई लेकिन ओवरसीज में 2.2 करोड़ की कमाई हुई।
विश्लेषकों का मानना है कि यह 'हेट इकोनॉमी' का अंत हो सकता है। एक रिपोर्ट में कहा गया "भारत आगे बढ़ चुका है, पुरानी जख्मों को कुरेदना अब काम नहीं करता।" फिर भी फिल्म ने 12.26 करोड़ की वर्ल्डवाइड कमाई की है।
'द बंगाल फाइल्स' सिर्फ एक फिल्म नहीं बल्कि विभाजन के दर्द की याद है। एंटी-नेशनल तत्वों का विरोध साबित करता है कि सत्य से डरने वाले अभी भी मौजूद हैं। लेकिन राष्ट्रवादियों के प्रदर्शन दिखाते हैं कि आवाज दबी नहीं। क्या बंगाल के सिनेमाघरों में जल्द स्क्रीनिंग होगी? या राजनीति सिनेमा को कुचल देगी? समय बताएगा, लेकिन इतिहास कभी माफ नहीं करता।
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