भारत के पर्वतीय क्षेत्र विशेष रूप से हिमालय और पश्चिमी घाट प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध हैं लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ये क्षेत्र बढ़ती भूस्खलन आपदाओं का शिकार हो रहे हैं। जलवायु परिवर्तन तो एक वैश्विक समस्या है ही लेकिन अनियोजित विकास और भारी वर्षा के कारण इन आपदाओं की संख्या और तीव्रता में वृद्धि हो रही है। 2025 के अगस्त महीने में उत्तराखंड के धराली गांव में एक भयानक भूस्खलन और बाढ़ ने चार लोगों की जान ले ली और 50 से अधिक लोग लापता हो गए। इसी तरह हिमालय क्षेत्र में भारी बारिश ने भारत और पाकिस्तान में 176 लोगों की मौत का कारण बना। ये घटनाएं दर्शाती हैं कि पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन अब एक सामान्य समस्या बन चुकी है जो लाखों लोगों के जीवन को खतरे में डाल रही है।
कारण: क्यों बढ़ रही हैं भूस्खलन आपदाएँ?
भूस्खलन की मुख्य वजहें प्राकृतिक और मानवीय दोनों हैं। सबसे प्रमुख कारक जलवायु परिवर्तन है जो हिमालय में बर्फबारी और वर्षा के पैटर्न को बदल रहा है। ग्लेशियरों का पिघलना ढलानों की स्थिरता को कम कर रहा है। इसके अलावा गर्म होते समुद्रों के कारण मानसून की तीव्रता बढ़ गई है जिससे कम समय में अधिक वर्षा होती है। हिमालय क्षेत्र में जून से सितंबर तक होने वाला मानसून वार्षिक वर्षा का 70% से अधिक होता है लेकिन अब यह और अधिक उग्र हो गया है।
मानवीय गतिविधियां भी इस समस्या को बढ़ा रही हैं। जंगलों की कटाई, सड़कों और बांधों का अनियोजित निर्माण और पर्यटन विकास ने ढलानों को कमजोर कर दिया है। उदाहरण के लिए उत्तराखंड में तेहरि बांध के आसपास के क्षेत्र विशेष रूप से संवेदनशील हैं जहां अत्यधिक वर्षा के कारण भूस्खलन का जोखिम बढ़ रहा है।
नासा की एक हालिया अध्ययन के अनुसार 21वीं शताब्दी के अंत तक हाई माउंटेन एशिया में भूस्खलन जोखिम में 30% से अधिक की वृद्धि हो सकती है जिसमें भारतीय हिमालय शामिल है।
असम और हिमाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों में वर्षा पैटर्न में बदलाव पहले से ही भूस्खलन को प्रभावित कर रहा है।
प्रभावित क्षेत्र और हालिया घटनाएं
भारत के प्रमुख पर्वतीय क्षेत्रों में हिमालय सबसे अधिक प्रभावित है जहां उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और सिक्किम जैसे राज्य नियमित रूप से भूस्खलन का सामना करते हैं। 2025 में अगस्त में धराली गांव में कीचड़ और पानी की तेज धारा ने पूरे गांव को तबाह कर दिया, जिसमें घर दब गए और सड़कें अवरुद्ध हो गईं। इसी महीने, मनसेहरा जिले में भूस्खलन ने पर्यटकों को फंसा दिया और बचाव कार्यों में बाधा आई। पश्चिमी घाट में भी महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्यों में मानसून के दौरान भूस्खलन आम हो गए हैं।
इन आपदाओं का प्रभाव व्यापक है। मानवीय हानि के अलावा आर्थिक नुकसान भी भारी होता है। सड़कें, पुल और बिजली ग्रिड क्षतिग्रस्त हो जाते हैं जिससे पर्यटन और कृषि प्रभावित होती है। पर्यावरणीय रूप से मिट्टी का क्षरण और जैव विविधता की हानि होती है। विशेषज्ञों का मानना है कि ये बैक-टू-बैक आपदाएं जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चुनौतियों को उजागर करती हैं।
प्रभाव और चुनौतियां
भूस्खलन आपदाओं से हर साल सैकड़ों लोगों की मौत होती है और हजारों बेघर हो जाते हैं। 2025 की घटनाओं में ही भारत और पाकिस्तान में 200 से अधिक मौतें दर्ज की गईं। बुनियादी ढांचे पर असर से बचाव कार्य कठिन हो जाते हैं जैसे कि अवरुद्ध सड़कों के कारण। गरीब और दूरदराज के समुदाय सबसे अधिक प्रभावित होते हैं जहां चिकित्सा और राहत पहुंचना मुश्किल होता है।
इन आपदाओं को रोकने के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण आवश्यक है। सबसे पहले जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक प्रयासों में भारत की भागीदारी बढ़ानी होगी। स्थानीय स्तर पर वनरोपण, ढलान स्थिरीकरण और बेहतर भूमि उपयोग योजना महत्वपूर्ण हैं। प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली जैसे मौसम पूर्वानुमान और सेंसर-आधारित निगरानी जीवन बचाने में मदद कर सकती हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) को मजबूत करना और स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षित करना जरूरी है। जलवायु-अनुकूल विकास जैसे कि पर्यावरण-अनुकूल सड़क निर्माण भविष्य की आपदाओं को कम कर सकता है।
भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में बढ़ती भूस्खलन आपदाएँ एक गंभीर चेतावनी हैं कि जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप के परिणाम अब नजरअंदाज नहीं किए जा सकते। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई तो ये क्षेत्र और अधिक असुरक्षित हो जाएंगे। सरकार, वैज्ञानिकों और आम लोगों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है ताकि इन प्राकृतिक सौंदर्यों को संरक्षित किया जा सके और जीवन सुरक्षित रहे।
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Informative 👍🏻
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